सुबह के अज़कार और शाम के अज़कार अरबी ज़ुबान में दुआएं है, अज़कार लफ्ज़ ज़िक्र की जमा है, जिसके म ‘आनी अल्लाह की याद के है।
ये जो सुबह के अज़कार और शाम के अज़कार है ये हमें सय्यिदुल अव्वलीन वल अखिरीन , इमाम ए कायनात , शफी उल मुज़निबीन, रहमतुल्लिल आलमीन, हमारे आक़ा, सय्यिदुना व मौलाना, इमाम ए आज़म , जनाब ए मुहम्मद मुस्तफा (ﷺ) ने हमें सिखाई हैं।
ये सुबह के अज़कार और शाम के अज़कार सहीह सनद से साबित है जो हुज़ूर (ﷺ) के इरशादात की 6 अहम् हदीस की किताबो में मज़कूर है. ये हमारे नबी ए पाक (ﷺ) की सिखाई हुई दुआएं है और हमारी वेबसाइट SunnatAzkar.com पर जो भी हदीस आपको नज़र आएगी वो उसकी लिंक के साथ दस्तेयाब होगी, जिस पर क्लिक कर के आप उस हदीस की ऑनलाइन किताब में उस हदीस को पढ़ सकते है।
और जहा क़ुरान की आयात दी गयी है उसके साथ क़ुरान.कॉम की लिंक और सूरह नंबर और आयत नंबर भी है जिससे की आप खुद उस आयत को पढ़ कर तस्दीक़ कर सकते है।
यहाँ हमारा मक़सद ये है के ग़लती की कोई गुंजाईश न रहे, और आप खालिस क़ुरान और सुन्नत के मवाद के ज़रिये अपनी मंज़िल तक पहुँच जाए।
सुबह के अज़कार और शाम के अज़कार बयान करने से मुराद ये भी है के उन पर अमल कर के आप और हम दुनिया और आख़ेरत की ने’मते हासिल कर सके, मगर अक्सर लोगो के लिए सुबह के अज़कार और शाम के अज़कार का पढ़ना एक मुश्किल काम हो सकता है, लेकिन चूंकि नबी ए करीम (ﷺ) ने हमें उन्हें पढ़ने की तरग़ीब दिलाई है, इसलिए उनसे आख़ेरत की स’आदते वाबस्ता है।
अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त से दुआ है की हमारी वेबसाइट SunnatAzkar.com पर सुबह के अज़कार और शाम के अज़कार पढ़ कर आप इन्हे अपने दोस्त, रिश्तेदार और अज़ीज़ो तक इसे पोहचाएँगे ताके वो भी दुनिया और आख़ेरत की ने’अमतो से सरफ़राज़ हो सके.
Table of Contents
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यहाँ आपको एक लफ्ज़ का मफ़हूम बताना बेहद ज़रूरी है, जिसे हदीसे क़ुद्सी कहा जाता है। क्यों के जब भी आप इस्लामी मवाद का मुता’अला करेंगे तो ये लफ्ज़ आपके सामने बारबार आएगा.
हदीस क़ुदसी क्या है?
हदीस क़ुदसी वह हदीस है जिसमें अल्लाह के पैगंबर (ﷺ) खुद अल्लाह के अल्फ़ाज़ सुनाते हैं और ये अल्लाह का वो बयान हैं जो सिर्फ हदीस में पाया जाता हैं, कुरान में नहीं।
हमने नीचे एक हदीस क़ुदसी को नक़ल किया है, इसलिए आप पढ़ना जारी रखे।
सुबह के अज़कार करने का सही वक़्त कब है?
इस्लाम में, सुबह को सुबह सादिक कहा जाता है जिसका मतलब है सच्ची सुबह, जब सूरज उफ़क़ से 18 डिग्री नीचे होता है, यानी वह वक़्त जब आप रोज़ा रखने के लिए खाना खाना रोक देते हैं या जब फज्र की नमाज़ का वक़्त शुरू होता है।
इसलिए अगर किसी भाई को सुबह के अज़कार करने है तो वह इस वक़्त जब फज्र की अज़ान होना बाकि हो, तब कर सकता है। और आप इसे फज्र की अज़ान के बाद भी कर सकते हैं, लेकिन सुबह के अज़कार जल्दी करना बेहतर है।
शाम के अज़कार करने का सही वक़्त कब है?
इस्लाम में, शाम का वक़्त मगरिब के वक़्त की शुरुआत से ठीक पहले होता है। मगरिब का वक़्त तब शुरू होता है जब सूरज की थाली उफ़क़ के पीछे पूरी तरह से गायब हो जाती है। इसका मतलब है कि आप मगरिब की अज़ान से 15 से 20 मिनट पहले शाम के अज़कार पढ़ सकते हैं। अगर आप उस वक्त पढ़ नहीं सकते हैं तो मगरिब की नमाज के बाद भी शाम के अज़कार पढ़ सकते हैं।
सुन्नत अज़कार का पढ़ना क्यों ज़रूरी है?
अल्लाह के ज़िक्र की अहमियत को समझने के लिए आइए हम कुरान की आयत और कुछ हदीसो का मुता’अला करते है,
أَلَا بِذِكْرِ ٱللَّهِ تَطْمَئِنُّ ٱلْقُلُوبُ
अला बिज़िकरील्लाही ततमाइन्नुल क़ुलूब
आगाह हो जाओ! अल्लाह के ज़िक्र के साथ ही दिल मुतमईन होते है.
सूरह र’अद, आयत 28, (Quran 13:28)
हदीस:
अबू मूसा रिवायत करते हैं के, अल्लाह के नबी (ﷺ) ने इरशाद फरमाया:” जो शख्स अल्लाह का ज़िक्र करता है उसके मुक़ाबले में जो शख़्स अल्लाह का ज़िक्र नहीं करता उसकी मिसाल ऐसी है, जैसे ज़िंदा के मुकाबले में मुर्दा की होती है। ”
फ़ायदा:
ऊपर दी गई हदीस से मालूम हुआ के जो बंदा अल्लाह का ज़िक्र करता है वो सही माईनो में ज़िंदा है और जो शख़्स अल्लाह का ज़िक्र नहीं करता उसका दिल मुर्दा हो जाता है।
हदीसे क़ुदसी:
अबू हुरैरा रिवायत करते हैं के अल्लाह के नबी (ﷺ) ने इरशाद फरमाया:”अल्लाह फरमाता है:’मैं अपने बंदे के साथ होता हूं जब वो मुझे याद करता है और मेरा नाम लेते हुए उसके होंठ हरकत करते हैं।”
फ़ायदा:
इस हदीस से मालूम हुआ के बंदा जब अल्लाह का ज़िक्र करता है और उसके होंठ जब हरकत करते हैं अल्लाह उसके साथ होता है, तो ऐसा ज़िक्र जिसमें बंदे के होंठ हरकत कर रहे हों वो उस ज़िक्र से बेहतर है जो बंदा अपने दिल में कर रहा हो.
وَٱذْكُر رَّبَّكَ كَثِيرًۭا وَسَبِّحْ بِٱلْعَشِىِّ وَٱلْإِبْكَـٰرِ
वज़कूर- रब्बाका कसीर-व्व सब्बिह बिल अशीय्य वल इबकार
अपने रब को कसरत से याद किया करो और उसकी पाकी बयान करो सुबह के वक्त भी और शाम के वक्त भी।
सूरह आले इमरान, आयत 41 (क़ुरान 3:41)
يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ ٱذْكُرُوا۟ ٱللَّهَ ذِكْرًۭا كَثِيرًۭا وَسَبِّحُوهُ بُكْرَةًۭ وَأَصِيلًا
या अय्युहल्लज़ीना आमनू-ज़कुरुल्लाह ज़िकरन कसीरा व सब्बिहुहू बुकरतव-व असीला
ऐ ईमान वालो, अल्लाह को कसरत से याद किया करो, और उसकी तारीफ बयान करो, सुबह के वक्त भी और शाम के वक्त भी।
सूरह अहज़ाब, आयत 41 और 42 (कुरान 33:41,42)
हदीस:
अब्दुल्लाह बिन बुस्र रिवायत करते हैं के एक शख़्स ने अल्लाह के नबी से अर्ज़ किया: “अल्लाह के नबी (ﷺ), मेरे लिए इस्लाम के क़वानीन बोहत ज़्यादा हो गए हैं, तो मुझे कोई ऐसी चीज़ बताईए जिसे मैं गांठ बांध लू।”
इस पर हुज़ूर ए पाक (ﷺ) ने इरशाद फ़रमाया: “अपनी ज़ुबान को ज़िक्र ए इलाही से हमेशा तर रखना।”
किसी भी वक्त पढ़ने के लिए बेहतरीन सुन्नत अज़कार
ऊपर दी गई मालूमात को मद्दे नज़र रखते हुए, बंदे को अपने रब का ज़िक्र हर वक्त हर घड़ी करते रहना चाहिए। इसलिए यहां पर हमने 3 ऐसे ज़िक्र अज़कार बताए हैं जिन्हें आप 24 घंटे में कभी भी पढ़ सकते है।
سُبْحَانَ اللَّهِ وَبِحَمْدِهِ سُبْحانَ اللَّهِ الْعَظِيمِ
सुब्हानल्लाही वबी हम्दिहि सुब्हान-अल्लाहिल अज़ीम
अल्लाह पाक है और सारी बड़ाइया उसी के लिए है, अल्लाह अज़ीम है, हर ऐब से पाक है
हदीस:
अबू हुरैरा (रदि.) रिवायत करते हैं के अल्लाह के नबी (ﷺ) ने फरमाया,”दो अल्फ़ाज़ ऐसे हैं जो ज़बान पर हल्के हैं, याद रखने के लिहाज़ से, लेकिन मिज़ान पर बहुत भारी है और अल्लाह को महबूब है: ‘सुब्हान-अल्लाही वा बिहमदिही, सुब्हान-अल्लाहिल-अज़ीम [अल्लाह पाक है और सारी बड़ाइया उसी के लिए है, अल्लाह अज़ीम है, हर ऐब से पाक है]’
[अल-बुखारी और मुस्लिम]
سُبْحَانَ اللَّهِ وَالْحَمْدُ لِلَّهِ وَلَا إِلَهَ إِلَّا اللَّهُ وَاللَّهُ أَكْبَرُ
सुब्हान अल्लाह, वा अलहम्दो लिल्लाह, वा ला इलाहा इल्लल्लाहु वल्लाहु अकबर
अल्लाह पाक है, तमाम तारीफ अल्लाह ही के लिए हैं, अल्लाह के अलावा कोई और माबूद नहीं, अल्लाह सब से बड़ा है।
हदीस:
समुरा बी. जुन्दुब रिवायत करते हैं के अल्लाह के नबी (ﷺ) ने इरशाद फरमाया, “बेहतरीन अल्फ़ाज़ 4 है: सुब्हान अल्लाह, व-अलहम्दो लिल्लाह, व ला इलाहा इल्लल्लाहु वल्लाहु अकबर (अल्लाह पाक है, तमाम तारीफ अल्लाह ही के लिए हैं, अल्लाह के अलावा कोई और माबूद नहीं, अल्लाह सब से बड़ा है।)
एक और तरीक़ है जिसमे आता है, “अल्लाह को 4 अल्फ़ाज़ महबूब है: सुब्हान अल्लाह, वलहमदो लिल्लाह, व ला इलाहा इल्लल्लाहु वल्लाहु अकबर (अल्लाह पाक है, तमाम तारीफ अल्लाह ही के लिए है, अल्लाह के अलावा कोई और मा’अबूद नहीं, अल्लाह सब से बड़ा है।) इससे फर्क नहीं पड़ता के आप कोनसा लफ्ज़ पहले कहते हो”
मुस्लिम ने भी इसे रिवायत किया है।
अल्लाह के नबी (ﷺ) ने इरशाद फरमाया: मुझे सुब्हानल्लाह, वलहम्दु लिल्लाह, व ला इलाहा इल्लल्लाह, वल्लाहु अकबर, (अल्लाह पाक है, तमाम तारीफ अल्लाह ही के लिए है, अल्लाह के अलावा कोई और मा’अबूद नहीं, अल्लाह सब से बड़ा है) का कहना सूरज जिन तमाम चीज़ों पर तुलू होता है उन तमाम चीज़ों से ज़्यादा महबूब है। (गरज़ तमाम दुनिया से ज़्यादा मेहबूब है)
रेफेरेंस: मुस्लिम 4/2072.
لا إلهَ إلاّ اللّهُ وحْـدَهُ لا شَـريكَ لهُ، لهُ المُـلْكُ ولهُ الحَمْـد، وهُوَ على كُلّ شَيءٍ قَدير
‘ला इलाहा इल्ल-ल्ललाह वहदहु ला शारिका लहू, लहू-ल-मुल्क वा लहुल- हम्द व हुवा ‘अला कुल्ली शयईन कदीर
अल्लाह के अलावा कोई और मा’अबूद नहीं, वो अकेला है और उसका कोई साथी नहीं है। उसकी हुकूमत है और उसकी तारीफ है, और वो हर चीज़ पर कादिर है
हदीस:
अबू हुरैरा रिवायत करते हैं:
अल्लाह के रसूल (ﷺ) ने इरशाद फरमाया,” जो कोई भी कहेगा: ”ला इलाहा इल्ल-ल्ललाह वहदहु ला शारिका लहू, लहू-ल-मुल्क वा लहुल- हम्द व हुवा ‘अला कुल्ली शयईन कदीर,” 100 मरतबा, तो उसे 10 गुलाम आज़ाद कारवाने के बराबर सवाब मिलेगा; और 100 नेकिया उसके अमल में लिखी जाएगी, और 100 गुनाह उसके अमल में से मिटाये जाएंगे, और उसका ये कहना उसके लिए उस दिन से लेकर रात तक शैतान से ढाल की तरह उसकी हिफ़ाज़त करेगा, और कोई भी उससे बेहतर अमल नहीं कर पाएगा सिवाय उसके जो इसे उससे ज़्यादा बार पढ़े।
अबू हुरैरा (रजि.) रिवायत करते हैं:
अल्लाह के नबी (ﷺ) ने इरशाद फरमाया, “वो जो हर नमाज के बाद पढ़ता है: सुब्हान-अल्लाह (अल्लाह पाक है) 33 मरतबा; अल-हम्दु लिल्लाह (तमाम तारीफ अल्लाह ही के लिए है) 33 मरतबा; अल्लाहु अकबर ( अल्लाह सब से बड़ा है) 33 मरतबा; और 100 मरतबा पढ़ता है: ला इलाहा इल्ल-ल्लाहु, वहदहु ला शरिका लहू, लहुल-मुल्कू व लहुल-हम्दु, व हुवा ‘अला कुल्ली शयईन कदीर (अल्लाह के अलावा कोई हक़ीक़ी मा’बूद नहीं है. वो अकेला है और उसका कोई साथी नहीं है। उसकी हुकूमत है और उसकी तारीफ है, और वो हर चीज़ पर कादिर है), उसके तमाम गुनाह माफ कर दिए जाएंगे फिर चाहे वो समंदर की सतह पर मौजुद झाग जितने ही बड़े क्यों ना हो।”
[मुस्लिम]
सुबह के अज़कार और शाम के अज़कार
सुबह के अज़कार और शाम के अज़कार एक ही है, बस सुबह और शाम की कुछ दुआएँ हैं जिनमें एक दो अल्फाज़ो का फर्क है।
नीचे हम आपको एक-एक कर के इनके बारे में बताएंगे। अज़कार के साथ में इन्हे कितनी मरतबा पढना है ये भी बता दिया गया है।
आयतुल कुरसी (कुरान सूरह 2: आयत 255): 1 बार
ٱللَّهُ لَآ إِلَـٰهَ إِلَّا هُوَ ٱلْحَىُّ ٱلْقَيُّومُ ۚ لَا تَأْخُذُهُۥ سِنَةٌۭ وَلَا نَوْمٌۭ ۚ لَّهُۥ مَا فِى ٱلسَّمَـٰوَٰتِ وَمَا فِى ٱلْأَرْضِ ۗ مَن ذَا ٱلَّذِى يَشْفَعُ عِندَهُۥٓ إِلَّا بِإِذْنِهِۦ ۚ يَعْلَمُ مَا بَيْنَ أَيْدِيهِمْ وَمَا خَلْفَهُمْ ۖ وَلَا يُحِيطُونَ بِشَىْءٍۢ مِّنْ عِلْمِهِۦٓ إِلَّا بِمَا شَآءَ ۚ وَسِعَ كُرْسِيُّهُ ٱلسَّمَـٰوَٰتِ وَٱلْأَرْضَ ۖ وَلَا يَـُٔودُهُۥ حِفْظُهُمَا ۚ وَهُوَ ٱلْعَلِىُّ ٱلْعَظِيمُ
अल्लाहु, ला इलाहा इल्ला हुवल हय्युल कय्यूम। ला ता’खुज़ुहु सिनातुव्वला नौम। लहु मा फिस-समावाती वमा फिल अर्द। मन ज़ल्लज़ी यशफ़ाउ ‘इंदहु, इल्ला बी इज़निही। य’लमु मा बयना अयदिहिम, वमा ख़लफाहुम। वला युहितूना बि शयइम-मिन इलमिही, इल्ला बीमा शा’आ। वसी’आ कुर्सिय्युहुस-समावाती वल अर्द। वला यऊदुहु हिफज़ुहुमा। वहुवल अलिय्युल अज़ीम.
सूरह इखलास (कुरान सूरह 112): 3 बार
قُلۡ هُوَ ٱللَّهُ أَحَدٌ ، ٱللَّهُ ٱلصَّمَدُ ، لَمۡ يَلِدۡ وَلَمۡ يُولَدۡ ، وَلَمۡ يَكُن لَّهُ ڪُفُوًا أَحَدٌ
क़ुल हुव-अल्लाहु अहद, अल्लाहुस समद, लम यलिद वलम युलद, वलम यकुल्लहु कुफुवन अहद।
सूरह फलक (कुरान सूरह 113): 3 बार
قُلۡ أَعُوذُ بِرَبِّ ٱلۡفَلَقِ ، مِن شَرِّ مَا خَلَقَ ، وَمِن شَرِّ غَاسِقٍ إِذَا وَقَبَ ، وَمِن شَرِّ ٱلنَّفَّـٰثَـٰتِ فِى ٱلۡعُقَدِ ، وَمِن شَرِّ حَاسِدٍ إِذَا حَسَدَ
क़ुल आउज़ु बिरब्बिल फ़लक, मिन शर्री मा खलक, व मिन शर्री ग़ासिकिन इधा वकब, व मिन शर्रिन नफ्फासाती फ़िल उक़द, व मिन शर्री हासिदिन इधा हसद।
सूरह नास (कुरान सूरह 114): 3 बार
قُلۡ أَعُوذُ بِرَبِّ ٱلنَّاسِ ، مَلِكِ النَّاسِ ، إِلَـٰهِ ٱلنَّاسِ ، مِن شَرِّ ٱلۡوَسۡوَاسِ ٱلۡخَنَّاسِ ، ٱلَّذِى يُوَسۡوِسُ فِى صُدُورِ ٱلنَّاسِ ، مِنَ ٱلۡجِنَّةِ وَٱلنَّاسِ
कुल अउज़ू बिरब्बिन नास, मलिकिन नास, इलाहिन नास, मिन शर्रील वसवासिल ख़न्नास, अल्लधि युवसविसु फी सुदुरिन नास, मीनल जिन्नती वन नास।
10 बार ये अज़कार पढ़े:
لا إلهَ إلاّ اللّهُ وحْـدَهُ لا شَـريكَ لهُ، لهُ المُـلْكُ ولهُ الحَمْـد، وهُوَ على كُلّ شَيءٍ قَدير
ला इलाहा इल्लल्लाहो वहदहु ला शरिका लहू, लहुल मूलकु, व लहुल हम्द, वहुवा ‘अला कुल्ली शयइन कदीर।
रेफरेन्स: सहिह अल बुखारी 6403
3 बार ये अज़कार पढ़े:
بِسْمِ اللَّهِ الَّذِي لَا يَضُرُّ مَعَ اسْمِهِ شَيْءٌ فِي الْأَر ْضِ وَلَا فِي السَّمَاءِ وَهُوَ السَّمِيعُ الْعَلِيمُ.
बिस्मिल्लाहिल्लज़ी ला यदुर्रू मा’स्मिही शयउन फिल अर्दी वला फिस्समाई व हुवस्समिउल अलीम।
रेफरेन्स : मुसनद अहमद 446
3 बार ये अज़कार पढ़े:
أَعـوذُ بِكَلِـماتِ اللّهِ التّـامّاتِ مِنْ شَـرِّ ما خَلَـق
अउज़ु बि कलिमातिल्लाही -त्ताम्माति मिन शर्री मा खलक।
रेफेरेंस: सहिह मुस्लिम 4/2080
3 बार ये अज़कार पढ़े:
سُبْحـانَ اللهِ وَبِحَمْـدِهِ عَدَدَ خَلْـقِه , وَرِضـا نَفْسِـه , وَزِنَـةَ عَـرْشِـه , وَمِـدادَ كَلِمـاتِـه
सुब्हान अल्लाही व बिहमदिही ‘अददा ख़ल्किही, व रिदा नफ़सिही, व ज़ीनता अरशिही, वा मिदादा कलीमातिही।
रेफेरेंस : सहिह मुस्लिम 4/2090, सही मुस्लिम 6913।
3 बार ये अज़कार पढ़े:
رَضيـتُ بِاللهِ رَبَّـاً وَبِالإسْلامِ ديـناً وَبِمُحَـمَّدٍ نَ بِيّـاً
रदियतु बिल्लाहि रब्बव्व-व बिल- इस्लामी दीनव्व-वबी मुहम्मदिन-नबिया।
रेफेरेंस: हिस्न अल मुस्लिम 87
3 बार ये अज़कार पढ़े:
أَسْتَغْفِرُ اللَّهَ الْعَظيمَ الَّذِي لاَ إِلَهَ إِلاَّ هُوَ ال ْحَيُّ القَيّوُمُ وَأَتُوبُ إِلَيهِ
अस्तगफिरुल्लाह अल अज़ीम अल्लज़ी ला इलाहा इल्ला हुवल हय्युल कय्यूम व अतुबु इलैह
रेफेरेंस : हिस्न अल मुस्लिम 250
7 बार ये अज़कार पढ़े:
اللَّهُمَّ أَجِرْنِي مِنَ النَّارِ
अल्लाहुम्मा अजीर्नी मिनन-नार
रेफेरेंस : मिश्कात अल-मसाबिह 2396
सुबह की दुआ
सुबह के अज़कार के अलावा कुछ मख़सूस दुआएँ हैं जिन्हे सुबह के वक़्त पढ़ना चाहिए।
اللهم بك أصبحنا, وبك أمسينا, وبك نحيا, وبك نموت, وإليك النشور
अल्लाहुम्मा बीका अस्बहना वबिका अम्सयना वबिका नह्या वबिका नमूतु व इलैकन-नुशूर
أَصْـبَحْنا علـى فِطْـرَةِ الإسْلام, وَعَلـى كَلِـمَةِ الإخْـلا ص، وَعلـى دينِ نَبِـيِّنا مُحَـمَّدٍ وَعَلـى مِلَّـةِ أبينـا إِبْـ راهيـمَ حَنيـفاً مُسْلِـماً وَمـا كـانَ مِنَ المُشـرِكيـن
अस्बहना ‘अला फितरत-इल-इस्लाम, व ‘अला कलीमत-इल-इखलास, व ‘अला दीनी नबीय्यीना मुहम्मदिन व ‘अला मिल्लती अबयना इब्राहीमा हनीफम-मुस्लिमन वमा काना मिन-अल मुशरिकिन।
أَصْبَحْنَا وَأَصْبَحَ الْمُلْكُ لِلَّهِ وَالْحَمْدُ لِلَّهِ، لاَ إِلَهَ إلاَّ اللَّهُ وَحْدَهُ لاَ شَرِيكَ لَهُ، لَهُ الْمُلْكُ وَلَهُ الْحَمْدُ وَهُوَ عَلَى كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ، رَبِّ أَسْأَلُكَ خَيْرَ مَا فِي هَذَا الْيَوْمِ وَخَيرَ مَا بَعْدَهُ، وَأَعُوذُ بِكَ مِنْ شَرِّ مَا فِي هَذَا الْيَوْمِ وَشَرِّ مَا بَعْدَهُ, رَبِّ أَعُوذُ بِكَ مِنَ الْكَسَلِ وَسُوءِ الْكِبَرِ، رَبِّ أَعُوذُ بِكَ مِنْ عَذَابٍ فِي النَّارِ وَعَذَابٍ فِي القَـبْر
अस्बहना व असबहल मुलकु लिल्लाही वल्हमदु लिल्लाही, ला इलाहा इल्लल्लाहु वहदहु ला शरिका लहू, लहुल मुलकु वलहुल हम्दु वहुवा ‘अला कुल्ली शयइन कदीर, रब्बी असअलुका खैरा मा फी हाज़ल यौमी व खैरा मा बा’दुहु व आ’उज़ू बिका मिन शर्री मा फी हाज़ल यौमि वा शर्री मा बा’दुहु, रब्बी आ’उज़ू बिका मिन-अलकसली व सूइल किबर, रब्बी आ’उज़ू बिका मिन ‘अज़ाबिन फिन नारी व ‘अज़ाबिन फिल क़ब्र।
शाम की दुआ
शाम के अज़कार के अलावा कुछ मख़सूस दुआएँ हैं जिन्हे शाम के वक़्त पढ़ना चाहिए।
اللهم بك أصبحنا, وبك أمسينا, وبك نحيا, وبك نموت, وإليك النشور
अल्लाहुम्मा बीका अस्बहना वबिका अम्सयना वबिका नह्या वबिका नमूतु व इलैकन-नुशूर
أَمْسَـينا علـى فِطْـرَةِ الإسْلام، وَعَلـى كَلِـمَةِ الإخْـلاص، وَعلـى دينِ نَبِـيِّنا مُحَـمَّدٍ وَعَلـى مِلَّـةِ أبينـا إِبْـراهيـمَ حَنيـفاً مُسْلِـماً وَمـا كـانَ مِنَ المُشـرِكيـن
अम्सयना ‘अला फितरत-इल-इस्लाम, व ‘अला कलीमत-इल-इखलास, व ‘अला दीनी नबीय्यीना मुहम्मदिन व ‘अला मिल्लति अबयना इब्राहीमा हनीफम-मुस्लिमन वमा काना मिन-अल मुशरिकीन।
أَمْسَيْنَا وَأَمْسَى الْمُلْكُ لِلَّهِ وَالْحَمْدُ لِلَّهِ لاَ إِلَهَ إِلاَّ اللَّهُ وَحْدَهُ لاَ شَرِيكَ لَهُ , لَهُ الْمُلْكُ وَلَهُ الْحَمْدُ وَهُوَ عَلَى كُلِّ شَىْءٍ قَدِيرٌ, رَبِّ أَسْأَلُكَ خَيْرَ مَا فِي هَذِهِ اللَّيْلَةِ وَخَيْرَ مَا بَعْدَهَا وَأَعُوذُ بِكَ مِنْ شَرِّ مَا فِي هَذِهِ اللَّيْلَةِ وَشَرِّ مَا بَعْدَهَا رَبِّ أَعُوذُ بِكَ مِنَ الْكَسَلِ وَسُوءِ الْكِبَرِ, رَبِّ أَعُوذُ بِكَ مِنْ عَذَابٍ فِي النَّارِ وَعَذَابٍ فِي الْقَبْرِ.
अम्सयना व अम्सल मुल्कु लिल्लाही वल हम्दुलिल्लाहि ला इलाहा इल्लल्लाहो वहदहु ला शरिका लहु, लहुल मुल्कु वलहुल हम्दु वहुवा ‘अला कुल्ली शयइन कदीर, रब्बी असलुका खैरा मा फी हाज़िहि-ल्लैलती व खैरा मा बा’दाहा वा आ’उज़ू बिका मिन शर्री मा फी हाज़िहि-ल्लयलति व शर्री मा बा’दाहा, रब्बी आ’उज़ू बिका मिन-अलकसली व सूईल किबर, रब्बी आ’उज़ू बिका मिन ‘अज़ाबिन फ़िन-नारी व अज़ाबिन फ़िल क़ब्र।
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इस सही और गलत मालुमत से उमड़ रहे इंटरनेट के समंदर में, आप इस्लाम की मुस्तनद, और सही मालूमात इसे खोजने वालो तक पहुंचाने का ज़रिया बने। SunnatAzkar.com के बारे में सबको बताएं कि SunnatAzkar.com पर सदाकत है, इस्लाम है।
अल्लाह करे के आप के फ़ैलाने से इस्लाम का इल्म और बरकते दुनिया के कोने कोने में फैले, और अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त आपको बेशुमार अज्र अता फरमाये।
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